Saturday, June 24, 2023

Buddha Vandana

बुद्ध वन्दना | Buddha Vandana  

नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मा सम्बुद्धस्स । 

नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मा सम्बुद्धस्स ।

 नमों तस्स भगवतो अरहतो सम्मा सम्बुद्धस्स ।

 त्रिशरण : 

बुद्धं सरणं गच्छामि ।

 धम्म सरणं गच्छामि ।

 संघ सरणं गच्छामि ।

 दुतियम्पि बुद्धं सरणं गच्छामि ।

 दुतियम्पि धम्म सरणं गच्छामि ।

 दुतियम्पी संघ सरणं गच्छामि ।

 ततियम्पि बुद्धं सरणं गच्छामि ।

 ततियम्पि धम्म सरणं गच्छामि ।

 ततियम्पी संघ सरणं गच्छामि ।

 पंचशील :

 पाणतिपाता वेरमणी सिक्खापदं समादियामि ।

 अदिन्नादाना वेरमणी सिक्खापदं समादियामि ।

 कामेसु मिच्छाचारा वेरमणी सिक्खापदं समादियामि ।

 मुसावादा वेरमणी सिक्खापदं समादियामि । 

सुरा-मेरय-मज्ज-पमादट्ठानावेरमणी सिक्खापदं समादियामि ।.


gautam buddha quotes


बुद्ध वंदना त्रिशरण पंचशील

 बुद्ध वन्दना :

 उन भगवन अर्हत सम्यक सम्बुद्ध को नमस्कार ।

 उन भगवन अर्हत सम्यक सम्बुद्ध को नमस्कार । 

ऊन भगवन अर्हत सम्यक सम्बुद्ध को नमस्कार ।

 त्रिशरण :

 मैं बुद्ध की शरण में जाता हूं । 

मैं धम्म की शरण में जाता हूँ ।

 में संघ की शरण में जाता हूँ ।

 मैं दूसरी बार भी बुद्ध की शरण में जाता हूँ । 

मैं दूसरी बार भी धम्म की शरण में जाता हूँ ।

 में दूसरी बार भी संघ की शरण में जाता हूँ ।

 मैं तीसरी बार भी बुद्ध की शरण में जाता हूँ ।

 मैं तीसरी बार भी धम्म की शरण में जाता हूँ ।

 में तीसरी बार भी संघ की शरण में जाता हूँ ।

 पंचशील :

 अर्थ मैं अकारण प्राणी हिंसा से दूर रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ ।

 मैं बिना दी गयी वस्तु को न लेने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ ।

 मैं कामभावना से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ ।

 में झूठ बोलने और चुगली करने से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ । 

मैं कच्ची-पक्की शराब,नशीली वस्तुओं के प्रयोग से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ । 

सबका मंगल हो.



बुद्ध पूजा 

वण्ण-गन्ध-गुणोपेतं एतंकुसुमसन्तति ।

 पुजयामि मुनिन्दस्य, सिरीपाद सरोरुहे ।१।

 पुजेमि बुद्धं कुसुमेन नेनं, पुज्जेन मेत्तेन लभामि मोक्खं ।

 पुप्फं मिलायति यथा इदंमे, कायो तथा याति विनासभावं।२।

 घनसारप्पदित्तेन, दिपेन तमधंसिना ।

 तिलोकदीपं सम्बुद्धं पुजयामि तमोनुदं ।३। 

सुगन्धिकाय वंदनं, अनन्त गुण गन्धिना। 

सुगंधिना, हं गन्धेन, पुजयामि तथागतं ।४। 

बुद्धं धम्मं च सघं, सुगततनुभवा धातवो धतुगब्भे।

 लंकायं जम्बुदीपे तिदसपुरवरे, नागलोके च थुपे। ५।

 सब्बे बुद्धस्स बिम्बे,सकलदसदिसे केसलोमादिधातुं वन्दे।

 सब्बेपि बुद्धं दसबलतनुजं बोधिचेत्तियं नमामि। ६।

 वन्दामि चेतियं सब्बं सब्बट्ठानेसु पतिठ्ठितं।

 सारीरिक-धातु महाबोधि, बुद्धरुपं सकलं सदा।७।.





 





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